Wednesday, 20 June 2012

          आज रात

आज पूरी रात मैं जागूँगा
अपने  कमरे से बाहर बुझे -अनबुझे
रोशनदानो को देखते हुए
मेरे मस्तिष्क के घरोंदो पर
बरसेगा खौलता पानी 
जिसे शहर  के लोग
अपनी काली नज़रों से गर्म करते हैं

एक तितली मेरे कंधे पर दम तोड़ेगी
मुझे महक सौंप कर
लपक कर उसे हवा छीन ले जाएगी
किसी और की गोद मैं
क्षितिज के ऊपर चमकेगी तस्वीर--
अपने पिता की बाहों से छूटता
शिशु मैं


मनहूस बदशक्ल मकानों से घिरी मेरी आत्मा
कोसेगी
एक खोई कब्र पर उग आये  झुरमुट की तरह
फैलते विचारो को ,सभ्यताओं को
मुद्राओं को,भूख को,अपनी कमज़ोर पड़ती
हड्डियों को ,संभवतः भाषाओँ को भी


दिवाभीत संगीत मेरी नाभि मैं सुस्तायेगा 
जब तक की अधकटा चाँद अपनी नाव न हटा ले
मेज़ पर सिर टीका रह जायेगा  सांसे घोटते
काली कॉफ़ी ठंडी हो जाएगी
और शायद अगली शाम को मैं
छीटक दूंगा दरिया पर  अपनी उदासी
पर आज रात ये सब कुछ होगा
एक-एक  करके ......

                                                              -    सजल

© 2012 कापीराईट सजल आनंद





   

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