साथी चिड़ई
प्यारी,अतिप्यारी
आह! कोमल
नन्हीं-सी चिड़ियाँ
कुछ ढूँढते
आ बैठी है
सेमल के वृक्ष पर
"फट" से
ग्रीवा चटख लाल
बदन श्वेत-श्याम
देश,वंश,प्रजाति
मुझको अनाम
मेरी अनामिका जितनी
वो चिड़ियाँ
मुझमे
क्षण -भर के लिए ही सही
एक खोया हुआ रोमांच है
इस वक़्त उसका आना
मेरे बचपन के आ धमकने जैसा है
जिसमे मैं अभी
क्वार की दुपहरी में
रसोई से चुराई
पानी से भरी कड़ाही
छत पर रख
बैठा हूँ थोड़ी दूर
छुपकर
चिड़ियाँ आई है
एक
बेहाल,बेचैन
चिड़ियाँ नहाती है
उस सुनहले तलैया के
पनियल आकाश में
बुँदे उछालते
मेरे बाल-मनोविज्ञान में
एक रूमानी अभिनेत्री की शैली में
मुझे गुनगुनाता है
उसका नहाना
और यह गुदगुदी
मेरे बचपन के
जलते तलवों पर भारी है
कोई चला गया है
उसके जाने की आहट से
खोया हुआ रोमांच
फिर से ख़ोया है
शायद बचपन?
शायद चिड़ियाँ ?
नहीं ! चिड़ियाँ नहीं
" चिड़ई ! "
तुम गयी क्या ?
मैं पूछता हूँ
उसके पंजो की
ऊर्जा पाकर
हिलती हुई पत्तियां
कहती हैं
हाँ ....
सेमल से गिरतीं
हवाई "सिम्फनी" पर
नाचती हैं
चमकीली उजास
वाली रुई की गेंदें
और एक तितली कौंधी है अभी-अभी
हवा कातते
गुनगुनाते हुए
कोई "विदा-गीत"
मैं चाहूँगा की
उसके डैनों की फड़फड़ाहट
ताज़ा रहें उस डाल पर
अभी कुछ दिन और
जब तक की
सावन उसे धो न दे
मेरे बचपन की साथी " चिड़ई "
तुम्हार धन्यवाद्
और गंगा भाई !
एक प्याली चाय और
बतौर उधार !!
© 2012 कापीराईट सजल आनंद सजल (२६.०४.२०१०)

प्यारी,अतिप्यारी
आह! कोमल
नन्हीं-सी चिड़ियाँ
कुछ ढूँढते
आ बैठी है
सेमल के वृक्ष पर
"फट" से
ग्रीवा चटख लाल
बदन श्वेत-श्याम
देश,वंश,प्रजाति
मुझको अनाम
मेरी अनामिका जितनी
वो चिड़ियाँ
मुझमे
क्षण -भर के लिए ही सही
एक खोया हुआ रोमांच है
इस वक़्त उसका आना
मेरे बचपन के आ धमकने जैसा है
जिसमे मैं अभी
क्वार की दुपहरी में
रसोई से चुराई
पानी से भरी कड़ाही
छत पर रख
बैठा हूँ थोड़ी दूर
छुपकर
चिड़ियाँ आई है
एक
बेहाल,बेचैन
चिड़ियाँ नहाती है
उस सुनहले तलैया के
पनियल आकाश में
बुँदे उछालते
मेरे बाल-मनोविज्ञान में
एक रूमानी अभिनेत्री की शैली में
मुझे गुनगुनाता है
उसका नहाना
और यह गुदगुदी
मेरे बचपन के
जलते तलवों पर भारी है
कोई चला गया है
उसके जाने की आहट से
खोया हुआ रोमांच
फिर से ख़ोया है
शायद बचपन?
शायद चिड़ियाँ ?
नहीं ! चिड़ियाँ नहीं
" चिड़ई ! "
तुम गयी क्या ?
मैं पूछता हूँ
उसके पंजो की
ऊर्जा पाकर
हिलती हुई पत्तियां
कहती हैं
हाँ ....
सेमल से गिरतीं
हवाई "सिम्फनी" पर
नाचती हैं
चमकीली उजास
वाली रुई की गेंदें
और एक तितली कौंधी है अभी-अभी
हवा कातते
गुनगुनाते हुए
कोई "विदा-गीत"
मैं चाहूँगा की
उसके डैनों की फड़फड़ाहट
ताज़ा रहें उस डाल पर
अभी कुछ दिन और
जब तक की
सावन उसे धो न दे
मेरे बचपन की साथी " चिड़ई "
तुम्हार धन्यवाद्
और गंगा भाई !
एक प्याली चाय और
बतौर उधार !!
© 2012 कापीराईट सजल आनंद सजल (२६.०४.२०१०)

प्यारी कविता !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मीता जी ! :)
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