प्रेम
१
पा लूं अगर अपने
साक्षी-भाव को
और शेष भूल जाऊ
जिसे ये दुनिया रोज़ मथती है
तब भी प्रेम
एक "घटना" ही रहेगा
२
गिलहरी की पूँछ
लहराती है जब
पत्तों का हिलना
कितना सार्थक लगता है
जैसे मेरी पक्षाभिकाएं
तुमसे द्रष्ट होकर
लहरा जातीं हैं
३
नाखूनों के ओट से
तुम्हारी अस्पष्ट काया
तुम्हारे शब्दों की तरह हैं
जिनसे मैं हांका जाता हूँ
जाने किस ओर
४
हमारी-तुम्हारी परछाइयाँ
दीवार पर
बाँट रहीं हैं एक-दुसरे को
कुछ न कुछ
अगली रात वो फिर लौटेंगी
५
गाँठ लग चुकी है
जीवन छन चुका है
अब तुम
समय के अवट को भरते
मल्हार से याद आओगे....
-- सजल (२२.०४.२०१०)
© 2012 कापीराईट सजल आनंद

१
पा लूं अगर अपने
साक्षी-भाव को
और शेष भूल जाऊ
जिसे ये दुनिया रोज़ मथती है
तब भी प्रेम
एक "घटना" ही रहेगा
२
गिलहरी की पूँछ
लहराती है जब
पत्तों का हिलना
कितना सार्थक लगता है
जैसे मेरी पक्षाभिकाएं
तुमसे द्रष्ट होकर
लहरा जातीं हैं
३
नाखूनों के ओट से
तुम्हारी अस्पष्ट काया
तुम्हारे शब्दों की तरह हैं
जिनसे मैं हांका जाता हूँ
जाने किस ओर
४
हमारी-तुम्हारी परछाइयाँ
दीवार पर
बाँट रहीं हैं एक-दुसरे को
कुछ न कुछ
अगली रात वो फिर लौटेंगी
५
गाँठ लग चुकी है
जीवन छन चुका है
अब तुम
समय के अवट को भरते
मल्हार से याद आओगे....
-- सजल (२२.०४.२०१०)
© 2012 कापीराईट सजल आनंद

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