Monday, 25 June 2012


  
राग मारवा

(विलंबित)

काँप उठा  
अलतई वृत्त

खींचता उसे
आकाश का दर्पण

तीर पर बैठी अनूढ़ा 
देख रही यह सब 

  (मध्य)

स्पर्श पा 

थिर हो गयी 
लजाकर
लहर

खुल गए कुंतल 
ढप गया  दर्पण     

प्रतीक्षारत नयनों में 
घुल रही स्याही 
मौन की

     (द्रुत)

हिलोरती हवा 
भींगे सेज को

मौन टूटा
आप्तकाम के प्रतिनाद से

धुल गयी रोली क्षितिज तक 
उड़ता प्रमत्त नीड़ज 
मुस्कुरा उठा

तीर पर बैठी  अनूढ़ा 
देख रही यह सब

                                            ----सजल  

© 2012 कापीराईट सजल आनंद 


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