Thursday, 28 June 2012

 राग हमीर

 ( विलंबित)

 छीज रही है हवा 
ख़ाली प्याली में भरी 
नमकीन उदासी को

उस बेज़ार कूचे से 
मिट्टी के तारों की 
आ रही है
तेज़ श्वेत गंध 

पहचान की  
एक पुरानी रात 
ढल रही है मुझमें      

 मैं ढूंढ रहा हूँ बिस्तर पर कुछ
अपनी एड़ियां रगड़ते 

     (मध्य) 

एक खोया हुआ 
 नाम
नीले पंख लगाकर
मेरे होठों पर फड़फड़ा रहा है

मेरी पलक
अपनी साँसे रोके
थमी है
सिकुड़े पन्ने के 
पीले धब्बें पर
जिसमें 
मेरी 
एक उम्र
बोल रही है --

   (द्रुत) 

मेरे पंजे भाग रहें हैं 
उस तरफ 
जहाँ मैं 
ठहर गया था 

पलकें हांफ रहीं हैं 

मैं बंद हूँ 
किसी नए संवाद के लिए 

रात भर बोलेगी ये रात 
मेरी उम्र से 

उन रातों से
कोसों  लम्बी 
ये रात !

                                            ----सजल  

© 2012 कापीराईट सजल आनंद 














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